सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार द्वारा पट्टा रद्द करने के खिलाफ जौहर ट्रस्ट की याचिका खारिज की

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आजम खान के मंत्री रहते हुए उनके ट्रस्ट को जमीन पट्टे पर दी गई:

आगरा/नई दिल्ली 14 अक्टूबर ।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (14 अक्टूबर) को रामपुर में मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट को सरकारी जमीन का पट्टा रद्द करने के उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान द्वारा स्थापित मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट द्वारा दायर याचिका खारिज की, जिसमें 4 फरवरी, 2015 की लीज डीड रद्द करने को चुनौती दी गई थी।

ट्रस्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 18 मार्च, 2024 को दिए गए फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें 31 मार्च, 2023 को लिए गए सरकार के फैसले के खिलाफ उसकी याचिका खारिज कर दी गई।

पीठ ने सरकारी अधिकारियों से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया कि ट्रस्ट को लीज पर दी गई जमीन पर चल रहे स्कूल के स्टूडेंट्स को वैकल्पिक उपयुक्त संस्थानों में प्रवेश मिले।

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कोर्ट-रूम एक्सचेंज

सुप्रीम कोर्ट में ट्रस्ट की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि बिना कोई कारण बताए यह निर्णय लिया गया।

सीजेआई चंद्रचूड़ ने इस बात की ओर इशारा करते हुए कि 2015 में लीज देने का फैसला तब लिया गया, जब आजम खान मंत्री थे निजी ट्रस्ट को दिए जा रहे लीज की वैधता पर संदेह जताया, जिसके खान आजीवन सदस्य थे।

सीजेआई ने पूछा,

“फैसले को पढ़ते समय ऐसा प्रतीत होता है कि आपके मुवक्किल (आजम खान) वास्तव में शहरी विकास मंत्रालय के प्रभारी कैबिनेट मंत्री थे और वे अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री थे। उन्होंने जमीन पारिवारिक ट्रस्ट को आवंटित करवाई, जिसके वे आजीवन सदस्य हैं और लीज शुरू में सरकारी संस्थान के पक्ष में थी, जो एक निजी ट्रस्ट से जुड़ी हुई है। एक लीज जो सरकारी संस्थान के लिए थी, उसे निजी ट्रस्ट को कैसे दिया जा सकता है?”

यह कहते हुए कि वे तथ्यों पर विवाद नहीं कर रहे हैं, सिब्बल ने इस बात पर प्रकाश डाला कि याचिकाकर्ता को उचित नोटिस नहीं दिया गया।

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सिब्बल ने कहा,

“मैं इनमें से किसी पर विवाद नहीं कर रहा हूं। मुद्दा यह है। अगर उन्होंने मुझे नोटिस और कारण बताए होते तो मैं इसका जवाब दे सकता था। आखिरकार, मामला कैबिनेट के पास गया। मुख्यमंत्री ने फैसला लिया। ऐसा नहीं है कि मैंने सिर्फ फैसला लिया।”

पद का दुरुपयोग

सीजेआई ने कहा कि मामले के तथ्य स्पष्ट रूप से पद के दुरुपयोग को उजागर करते हैं और जब तथ्य इतने स्पष्ट हैं तो उचित नोटिस देने से इनकार करना कोई बड़ा उल्लंघन नहीं हो सकता है।

सीजेआई ने कहा,

“यह पद का दुरुपयोग है शुरू में जब मैंने पढ़ना शुरू किया तो मैंने कहा, ठीक है, नोटिस देखें क्या आपको अवसर दिया गया लेकिन जब आप इन तथ्यों को देखते हैं तो और क्या “

सिब्बल ने कहा कि पट्टे को रद्द करना दुर्भावनापूर्ण था। इस बात पर प्रकाश डाला कि ट्रस्ट गरीब स्टूडेंट्स को रियायती दरों पर शिक्षा दे रहा था। उन्होंने कहा कि पांच प्रतिशत स्टूडेंट को बीस रुपये की दर से शिक्षा दी जाती है।

उन्होंने कहा,

“परीक्षाएं 18 मार्च को थीं और उन्होंने 14 मार्च को कब्जा ले लिया। यह गैर-लाभकारी संगठन है। 300 स्टूडेंट्स के पास अब पढ़ने के लिए कोई स्कूल नहीं है।”

सीजेआई ने कहा,

“सिब्बल, तथ्य बहुत ही खराब हैं। हम इसे यहीं छोड़ देते हैं। मैं सहमत हूं। उन 300 स्टूडेंट का क्या होगा, जिनके पास पढ़ने के लिए कोई स्कूल नहीं है? कम से कम सरकार से तो कहिए कि उन्हें समायोजित कर दिया जाए।”

पीठ ने याचिका यह कहते हुए खारिज की कि हाईकोर्ट के फैसले में कोई खामी नहीं है।

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पीठ ने आदेश में कहा,

“सीनियर एडवोकेट की इस दलील का जवाब देते हुए कि स्कूल में लगभग 300 स्टूडेंट्स पढ़ रहे हैं, जिन्हें किसी वैकल्पिक स्कूल में एडमिशन नहीं दिया गया। हम स्कूल शिक्षा विभाग के सचिव या उत्तर प्रदेश राज्य के सक्षम प्राधिकारी से अनुरोध करेंगे कि वे उपरोक्त शिकायत पर गौर करें। यह सुनिश्चित करें कि किसी भी बच्चे को उपयुक्त शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश से वंचित न किया जाए।”

हाईकोर्ट के समक्ष उत्तर प्रदेश सरकार ने दलील दी कि मौलाना मोहम्मद अली जौहर तकनीकी एवं शोध संस्थान को आवंटित भूमि ट्रस्ट को पट्टे पर दी गई थी। इस भूमि पर सीबीएसई स्कूल चलाया जा रहा था, जो उच्च शिक्षा के लिए था।

केस टाइटल : कार्यकारी समिति मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

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साभार: लाइव लॉ

विवेक कुमार जैन
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