सुप्रीम कोर्ट ने ‘लव जिहाद’ पर बरेली कोर्ट की टिप्पणी के खिलाफ जनहित याचिका पर विचार करने से किया इंकार

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आगरा /नई दिल्ली 02 जनवरी ।

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश बरेली कोर्ट के आदेश में ‘लव-जिहाद’ संबंधी टिप्पणी को हटाने तथा न्यायिक निर्णयों को व्यक्तिगत/सामान्यीकृत टिप्पणियों से मुक्त रखने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की मांग वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इंकार कर दिया।

जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की खंडपीठ ने याचिका को बिना दबाव के खारिज कर दिया, यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है (यूपी कोर्ट के समक्ष पक्षकार न होना) और वह केवल इस मुद्दे को ‘सनसनीखेज’ बना रहा है।

सुनवाई के दौरान, एडवोकेट मानस पी हमीद (याचिकाकर्ता के लिए) ने अदालत के एक प्रश्न के उत्तर में स्वीकार किया कि याचिकाकर्ता यूपी कोर्ट के समक्ष कार्यवाही में पक्षकार नहीं था।

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जवाब में जस्टिस रॉय ने कहा,

“आप एक व्यस्त व्यक्ति हैं। बस किसी ऐसी चीज में हस्तक्षेप कर रहे हैं, जो आपके लिए बिल्कुल भी काम की नहीं है। आप इस तरह के मामले के लिए अनुच्छेद 32 याचिका दायर नहीं कर सकते हैं।”

इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए जस्टिस भट्टी ने सवाल किया कि अदालत इस मामले जैसे स्वतंत्र मुकदमे में टिप्पणियों को कैसे हटा सकती है:

“यह मानते हुए कि सेशन कोर्ट के समक्ष साक्ष्य से विशेष निष्कर्ष निकाला जा सकता है। एक निष्कर्ष दर्ज किया गया, जो हमारे समक्ष याचिकाकर्ता से [संबंधित] नहीं है, क्या इसे इस तरह के स्वतंत्र मामले में हटा दिया जाना चाहिए ? हम इसकी भी जांच नहीं कर सकते। इस तरह से मामले को सनसनीखेज बनाना सही नहीं है।”

संक्षेप में जनहित याचिका ने यूपी कोर्ट के आदेश की आलोचना की, जिसमें ‘लव जिहाद’ को ऐसे कृत्य के रूप में समझाया गया था, जिसमें मुस्लिम पुरुष विवाह के माध्यम से इस्लाम में धर्मांतरण के लिए हिंदू महिलाओं को ‘व्यवस्थित रूप से लक्षित’ करते हैं और उन्हें धर्मांतरित करने के लिए ‘प्यार के बहाने’ हिंदू महिलाओं से धोखे से शादी करते हैं।

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उक्त आदेश में अपर जिला एवं सेशन जज, बरेली ने एक हिन्दू महिला से बलात्कार के जुर्म में मुस्लिम व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा सुनाते हुए कहा कि ‘लव-जिहाद’ का मुख्य उद्देश्य जनसांख्यिकीय युद्ध और अंतर्राष्ट्रीय षडयंत्र करके ‘एक धर्म विशेष के कुछ अराजक तत्वों’ द्वारा भारत पर वर्चस्व/प्रभुत्व स्थापित करना है।

साथ ही कहा कि ‘लव जिहाद’ के माध्यम से अवैध धर्मांतरण किसी बड़े उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है। यदि भारत सरकार ने समय रहते ‘लव जिहाद’ के माध्यम से अवैध धर्मांतरण को नहीं रोका तो भविष्य में देश को ‘गंभीर परिणाम’ भुगतने पड़ सकते हैं।

न्यायालय के आदेश में कहा गया,

“लव जिहाद के माध्यम से हिन्दू लड़कियों को प्रेम जाल में फंसाकर अवैध धर्म परिवर्तन का अपराध प्रतिद्वंद्वी गिरोह अर्थात सिंडिकेट द्वारा बड़े पैमाने पर किया जा रहा है, जिसमें गैर-मुस्लिम, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के कमजोर वर्गों के लोगों, महिलाओं और बच्चों का ब्रेनवॉश करके, उनके धर्म के बारे में गलत बातें बोलकर, देवी-देवताओं के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करके, उन पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाकर और उन्हें शादी, नौकरी आदि जैसे विभिन्न प्रकार के प्रलोभन देकर बहला-फुसलाकर भारत में भी पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे हालात पैदा किए जा सकें।”

केस टाइटल: अनस वी बनाम भारत संघ और अन्य

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साभार: लाइव लॉ

विवेक कुमार जैन
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