मुनि सुदर्शन: जीवन गाथा — एक दिव्य स्वप्न की साकारता में गुरु सेवक प्रमोद जैन जी का समर्पण

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इस विशेष संवाद में कानून राजतक के प्रधान संपादक और टीवी 9 भारतवर्ष चैनल के आगरा प्रभारी विवेक कुमार जैन ने बेंगलुरु निवासी सलाहकार प्रमोद जैन जी से बातचीत की :-

आगम ज्ञान रत्नाकर बहुश्रुत जय मुनि जी महाराज द्वारा रचित “सूर्योदय से सूर्यास्त तक” जैसे आध्यात्मिक महाग्रंथ को जब सिनेमाई रूप देने का विचार जन्मा, तो यह केवल एक फिल्म निर्माण की प्रक्रिया नहीं थी — यह एक तप, एक श्रद्धा, और एक दिव्य संकल्प की यात्रा थी। इस यात्रा में जिन व्यक्तित्वों ने अपनी आस्था, परिश्रम और समर्पण से इसे संभव बनाया, उनमें एक अत्यंत महत्वपूर्ण नाम है — बेंगलुरु निवासी प्रमोद जैन जी।

प्रमोद जी ने इस फिल्म में सलाहकार के रूप में जो भूमिका निभाई, वह केवल तकनीकी या रचनात्मक नहीं थी — वह एक श्रद्धालु की भूमिका थी, जिसने जैन मुनियों के प्रति अपनी आंतरिक भक्ति को कर्म में बदल दिया। उनके लिए यह फिल्म एक स्वप्न थी — वह स्वप्न जिसमें मुनि सुदर्शन जी महाराज के जीवन का तेज, त्याग और तप पूरे समाज तक पहुँचे। और उन्होंने उस स्वप्न को साकार करने के लिए तन-मन-धन से योगदान दिया।

 

उनकी जुबानी यह यात्रा और भी प्रेरक बन जाती है जब वह विवेक कुमार जैन से बातचीत के दौरान बताते हैं कि कैसे हर दृश्य, हर संवाद, और हर भाव के पीछे एक गहन साधना थी।
कैसे उन्होंने जैन संतों के मार्गदर्शन में, हर निर्णय को धर्म और श्रद्धा के तराजू पर तौला।
और कैसे यह फिल्म उनके लिए एक सेवा का माध्यम बन गई — समाज को आत्मशांति और संयम का संदेश देने का एक सशक्त प्रयास।

जिसमें न केवल फिल्म निर्माण की प्रक्रिया उजागर होती है, बल्कि एक श्रद्धालु के हृदय की धड़कन भी सुनाई देती है।

यह फिल्म मुनि सुदर्शन: जीवन गाथा नहीं, एक जीवन की गाथा है —और प्रमोद जैन जी जैसे समर्पित व्यक्तित्वों के कारण यह गाथा आज समाज के हृदय तक पहुँच रही है।

एक श्वेताम्बर जैन मुनि के जीवन पर आधारित फ़िल्म निर्माण की प्रेरणा क्या थी ?
प्रमोद जैन जी साझा करते हैं कि इस फ़िल्म की प्रेरणा केवल एक संत की जीवनगाथा नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, त्याग और संयम की उस लौ को जन-जन तक पहुँचाने की आकांक्षा थी, जो मुनि सुदर्शन जी के जीवन से प्रकट होती है। यह फ़िल्म एक आध्यात्मिक संदेश है, जो आज की भागदौड़ भरी दुनिया में शांति और विवेक की खोज को दिशा देती है।

निर्देशक, कलाकारों और सलाहकारों के साथ सहयोग, असहयोग और रचनात्मक मतभेदों को कैसे सुलझाया गया ?
प्रमोद जी बताते हैं कि रचनात्मक प्रक्रिया में मतभेद स्वाभाविक हैं, परंतु जब उद्देश्य ऊँचा हो और भावनाएँ शुद्ध हों, तो संवाद ही सेतु बनता है। उन्होंने सभी पक्षों की भावनाओं को सम्मान देते हुए, संयम और सहिष्णुता से समाधान खोजे। यही कारण रहा कि फ़िल्म की आत्मा अक्षुण्ण रही और हर व्यक्ति ने उसमें अपना सर्वश्रेष्ठ दिया।

फ़िल्म प्रोजेक्ट के लिए आर्थिक संसाधन कैसे जुटाए गए और किस वर्ग को ध्यान में रखकर यह फ़िल्म बनाई गई ?
प्रमोद जी बताते हैं कि यह फ़िल्म किसी व्यावसायिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक उद्देश्य के लिए बनी। समाज के विभिन्न वर्गों—विशेषकर युवाओं और शिक्षित वर्ग—को ध्यान में रखकर इसे इस तरह रचा गया कि वे मुनि जीवन के आदर्शों से जुड़ सकें। फ़ंडिंग भी श्रद्धा और सेवा-भाव से प्रेरित सहयोगियों के माध्यम से आई।

बायोपिक फ़िल्म की शूटिंग के दौरान सबसे बड़ी चुनौती क्या रही ?
प्रमोद जी कहते हैं कि सबसे बड़ी चुनौती थी—मुनि जीवन की गंभीरता और गरिमा को बिना किसी नाटकीयता के पर्दे पर उतारना। तप, मौन और आत्मसंयम को दृश्य माध्यम में सजीव करना एक साधना जैसा अनुभव था। हर दृश्य में सत्यता और भावनात्मक गहराई बनाए रखना ही सबसे कठिन कार्य रहा।

मुनि सुदर्शन का किरदार निभाने वाले कलाकार विवेक आनंद मिश्रा के बारे में क्या कहा प्रमोद जैन ने ?
प्रमोद जी भावुक होकर कहते हैं कि विवेक आनंद मिश्रा ने न केवल अभिनय किया, बल्कि उस चरित्र को जिया। उनके भीतर की शांति, आँखों की गहराई और संवादों की सहजता ने दर्शकों को मुनि सुदर्शन के साक्षात दर्शन कराए। यह चयन केवल अभिनय क्षमता नहीं, बल्कि आत्मिक सामर्थ्य का परिणाम था।

फ़िल्म की वित्तीय स्थिति, दर्शकों की प्रतिक्रिया और उद्देश्य की पूर्ति के बारे में प्रमोद जैन का दृष्टिकोण क्या रहा ?
प्रमोद जी बताते हैं कि फ़िल्म ने अपेक्षाओं से अधिक आत्मिक सफलता प्राप्त की। दर्शकों की आँखों में श्रद्धा, प्रतिक्रियाओं में भावनात्मक जुड़ाव और समाज में उठे संवादों ने सिद्ध किया कि यह प्रयास सार्थक रहा। वित्तीय दृष्टि से सीमित संसाधनों में भी यह फ़िल्म आत्मिक समृद्धि का उदाहरण बनी।

फ़िल्म निर्माण के बाद स्वयं और फ़िल्म से जुड़े लोगों के जीवन में क्या परिवर्तन आए?
प्रमोद जी कहते हैं कि यह फ़िल्म केवल एक रचना नहीं, एक यात्रा थी। इसमें जुड़े हर व्यक्ति ने भीतर कुछ पाया—कोई संयम सीखा, कोई सेवा का अर्थ समझा, और किसी ने आत्मा की पुकार सुनी। उनके अपने जीवन में भी अधिक स्थिरता, गहराई और आध्यात्मिकता आई।

इस फ़िल्म की सफलता के बाद भविष्य की योजनाओं के बारे में प्रमोद जैन ने क्या बताया?
प्रमोद जी उत्साहपूर्वक बताते हैं कि यह तो एक शुरुआत है। अब वे ऐसे और प्रकल्पों पर विचार कर रहे हैं जो भारतीय आध्यात्मिकता, त्याग और सेवा को जनमानस तक पहुँचाएँ। अगली योजना है, जिसमें विभिन्न संतों के जीवन और विचारों को समाहित किया जाएगा।

और अंत में, अपने विचारों को हमारे साथ साझा करने के लिए प्रमोद जैन जी को धन्यवाद।हम हृदय से आभार व्यक्त करते हैं प्रमोद जैन जी का, जिन्होंने न केवल एक फ़िल्म बनाई, बल्कि एक विचार-यात्रा को जन्म दिया। उनके अनुभव, दृष्टिकोण और भावनाएँ हम सबके लिए प्रेरणा हैं।

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विवेक कुमार जैन
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