मुंबई हाई कोर्ट ने कहा है कि लाउडस्पीकर का प्रयोग किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं

उच्च न्यायालय मुख्य सुर्खियां
उच्च न्यायालय मुंबई के कुर्ला और चूनाभट्टी क्षेत्रो मे दो वेलफेयर एसोसिएशनों की याचिकाओ पर कर रहा था सुनवाई
याचिका में की गई थी ध्वनि प्रदूषण मानदंडों का उल्लंघन के लिए मस्जिदों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग

आगरा /मुंबई 24 जनवरी ।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को जागो नेहरू नगर रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन बनाम पुलिस आयुक्त मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किसी भी धर्म का अनिवार्य पहलू नहीं है और अगर इसके लिए अनुमति नहीं दी जाती है तो किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं होता है।

न्यायमूर्ति अजय गडकरी और न्यायमूर्ति श्याम चांडक की पीठ ने मुंबई पुलिस को ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 को सख्ती से लागू करने का निर्देश देते हुए यह टिप्पणी की।

न्यायालय ने कहा,

“शोर विभिन्न पहलुओं पर स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा है। कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि अगर उसे लाउडस्पीकर का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जाती है तो उसके अधिकार किसी भी तरह से प्रभावित होंगे। यह सार्वजनिक हित में है कि ऐसी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। ऐसी अनुमति देने से इनकार करने से भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 या 25 के तहत अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता है। लाउडस्पीकर का उपयोग किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।”

न्यायालय मुंबई के कुर्ला और चूनाभट्टी क्षेत्रों में दो रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें ध्वनि प्रदूषण मानदंडों का उल्लंघन करने के लिए कई मस्जिदों और मदरसों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की गई थी।

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याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि अज़ान और धार्मिक प्रवचनों के लिए लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल से आसपास की शांति भंग हो रही है और शोर का स्तर अनुमेय सीमा से अधिक हो गया है।

पुलिस नियंत्रण कक्ष, ट्विटर और वरिष्ठ अधिकारियों को लिखित रूप से पुलिस को बार-बार शिकायत करने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई।

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि इस मुद्दे को संबोधित करने में पुलिस की विफलता लापरवाही और ध्वनि प्रदूषण नियमों का उल्लंघन है, साथ ही लाउडस्पीकर का उपयोग सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

इसके जवाब में, न्यायालय ने एफआईआर दर्ज करने के लिए कोई निर्देश जारी करने में असमर्थता व्यक्त की, लेकिन उसने धार्मिक स्थलों में इस्तेमाल किए जाने वाले लाउडस्पीकरों के डेसिबल स्तर को नियंत्रित करने के महत्व पर जोर दिया।

इसलिए, इसने निर्देश दिया कि राज्य धार्मिक संस्थानों द्वारा उपयोग किए जाने वाले लाउडस्पीकरों, ध्वनि एम्पलीफायरों, सार्वजनिक संबोधन प्रणालियों या किसी अन्य ध्वनि-उत्सर्जक गैजेट के डेसिबल स्तर को नियंत्रित करने के लिए तंत्र को लागू करने के लिए उपाय करे।

फैसले में कहा गया,

“इसलिए हम राज्य को निर्देश देते हैं कि वह सभी संबंधित पक्षों को अपने लाउडस्पीकर/वॉयस एम्पलीफ़ायर/पब्लिक एड्रेस सिस्टम या किसी भी धार्मिक स्थल/संरचना/संस्था द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले अन्य ध्वनि उत्सर्जक गैजेट में डेसिबल स्तर को नियंत्रित करने के लिए इनबिल्ट तंत्र लगाने का निर्देश देने पर विचार करे, चाहे वह किसी भी धर्म का हो।”

Order/Judgement/Attachment – Jaago_Nehru_Nagar_Residents_Welfare_Association_v_Commissioner_of_Police


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साभार: बार & बेंच

विवेक कुमार जैन
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