यह मामला बन सकता है भारत में नागरिक कानून में इस तरह के दावों की प्रवर्तनीयता का परीक्षण करने वाला पहला मामला
आगरा/नई दिल्ली:
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि भले ही व्यभिचार (एडल्टरी ) अब अपराध नहीं है, लेकिन इसके नागरिक परिणाम हो सकते हैं।
न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि एक पति या पत्नी अपने साथी के प्रेमी पर मुकदमा कर सकते हैं और वैवाहिक रिश्ते में हस्तक्षेप और भावनात्मक नुकसान के लिए मुआवजे की मांग कर सकते हैं।
न्यायमूर्ति पुरुषेंद्र कुमार कौरव की एकल पीठ ने 15 सितंबर के अपने आदेश में कहा कि किसी भी व्यक्ति को अपने विवाह की पवित्रता से कुछ उम्मीदें होती हैं।
हालांकि व्यक्तिगत स्वतंत्रता के तहत किया गया कोई भी कार्य आपराधिक नहीं हो सकता है, लेकिन ऐसा आचरण नागरिक परिणामों को जन्म दे सकता है।
जब कोई पति या पत्नी विवाह में खलल से हुए नुकसान के लिए कानूनी क्षतिपूर्ति का दावा करता है, तो कानून यह मानता है कि इस पवित्र बंधन को तोड़ने में योगदान देने वाले तीसरे पक्ष से मुआवजा मांगा जा सकता है।
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मामले की पृष्ठभूमि:
यह मामला एक महिला द्वारा दायर मुकदमे से जुड़ा है, जिसने अपनी शादी तोड़ने के लिए दूसरी महिला पर आरोप लगाया था। वादी महिला की शादी 2012 में हुई थी और 2018 में उसके जुड़वां बच्चे हुए।
उसने आरोप लगाया कि 2021 में उसके पति के व्यवसाय में शामिल होने वाली प्रतिवादी महिला ने उसके पति के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित कर लिए। परिवार के हस्तक्षेप के बावजूद, यह कथित संबंध जारी रहा, जिसके बाद अंततः पति ने तलाक के लिए अर्जी दे दी।
इसके बाद पत्नी ने भावनात्मक और साथी के नुकसान के लिए हर्जाने की मांग करते हुए यह मुकदमा दायर किया। प्रतिवादियों ने मुकदमे की वैधता को चुनौती दी, यह तर्क देते हुए कि विवाह से संबंधित विवादों की सुनवाई केवल पारिवारिक न्यायालयों में होनी चाहिए।
कोर्ट का फैसला:
न्यायालय ने प्रतिवादियों के तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि यह मामला पूरी तरह से नागरिक अधिकारों से संबंधित है, इसलिए इसकी सुनवाई दीवानी न्यायालय में हो सकती है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यद्यपि भारतीय कानून स्पष्ट रूप से ‘स्नेह-विमुखता’ (alienation of affection) को मान्यता नहीं देता है, अदालतों ने इसे सैद्धांतिक रूप से एक जानबूझकर किए गए नुकसान के रूप में माना है।
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न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादी के कार्यों से वास्तव में वैवाहिक संबंध विच्छेद हुआ या नहीं, इसका फैसला मुकदमे की सुनवाई के दौरान किया जाएगा।
इसके साथ ही न्यायालय ने मामले में सम्मन जारी कर दिया। यदि यह मामला आगे बढ़ता है, तो यह भारत में नागरिक कानून में इस तरह के दावों की प्रवर्तनीयता का परीक्षण करने वाला पहला मामला बन सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में ‘जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ’ मामले में व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था।
हालांकि, दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि इस फैसले ने विवाह से परे अंतरंग संबंधों में प्रवेश करने के लिए नागरिक या कानूनी निहितार्थों से मुक्त होने का लाइसेंस नहीं दिया है।
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