दिल्ली जिला उपभोक्ता निवारण आयोग द्वितीय ने माना कि मधुमेह, उच्च रक्त चाप जैसी जीवन शैली से जुड़ी बीमारियां को पहले से मौजूद बीमारी मानकर बीमा कंपनी नहीं कर सकती पीड़ित का दावा अस्वीकार

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आगरा/दिल्ली के 23 फरवरी ।

दिल्ली के जिला उपभोक्ता निवारण आयोग द्वितीय ने एक बीमा कंपनी के खिलाफ शिकायत को स्वीकार करते हुए फैसला सुनाया कि स्थापित कानून के अनुसार मधुमेह (डायबिटीज)और उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों को पहले से मौजूद बीमारी नहीं माना जा सकता और इसलिए बीमा कंपनी द्वारा इस आधार पर दावा अस्वीकार करने का आधार नहीं माना जा सकता।बीमा कंपनी ने शिकायत कर्ता का दावा इस आधार पर अस्वीकार कर दिया था कि मृतक ने बीमा लेते समय यह खुलासा नहीं किया था कि वह मधुमेह और उच्च रक्तचाप से पीड़ित था। मृतक ने अपने गृह ऋण के सापेक्ष बीमा कवर भी लिया था।

आयोग ने शिकायत का फैसला करते दिल्ली उच्च न्यायालय ने हरि ओम अग्रवाल बनाम ओरिएंटल-इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन में अदालत द्वारा इस जीवनशैली से जुड़ी बीमारी मधुमेह के संबंध में दिए गए आदेश के आलोक में कहा कि शिकायतकर्ता को दावे के क्षतिपूर्ति के लिए अयोग्य नहीं ठहराएगा। जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (दक्षिण) की अध्यक्ष माननीय मोनिका श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली पीठ ने ने मृतक प्रेम शंकर शर्मा के पीड़ित पुत्र निशांत शर्मा के पक्ष में आदेश पारित करते हुए कहा कि

“इस आयोग का विचार है कि शिकायतकर्ता का दावा विपरीत पक्ष बीमा कंपनी द्वारा गलत तरीके से अस्वीकार कर दिया गया था और इसलिए विपक्षी को बीमित राशि 45,00,000/- रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया जाता है, जिसमें आईडीबीआई को दावा अस्वीकृति की तारीख से इसकी प्राप्ति तक 7% प्रति वर्ष की दर से ब्याज दिया जाएगा। आदेश दिए जाने की तारीख से दो महीने के भीतर आईडीबीआई बैंक को भुगतान किया जाएगा, ऐसा न करने विपक्षी 9% प्रति वर्ष की दर से ब्याज का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगा।इसके साथ ही आयोग ने शिकायतकर्ता को हुई मानसिक उत्पीड़न की लागत के रूप में 25,000 रुपये का भुगतान करने का भी निर्देश विपक्षी बीमा कंपनी को दिया।

शिकायत पर निर्णय लेते समय आयोग ने दिल्ली राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के फैसले का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि

“उपरोक्त दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश से स्थापित कानून से यह स्पष्ट है कि मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी किसी भी जीवनशैली से जुड़ी बीमारी को पहले से मौजूद बीमारी नहीं माना जा सकता है, इसलिए यह बीमा कंपनी द्वारा दावे को खारिज करने का आधार नहीं हो सकता।

दिल्ली उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता के.के. शर्मा ने मृतक प्रेम शंकर शर्मा के कानूनी उत्तराधिकारियों में से एक निशांत शर्मा के लिए आयोग में एक शिकायत दर्ज करते हुए कहा कि शिकायतकर्ता के पिता ने आईडीबीआई बैंक से 240 महीनों के लिए 7.40% प्रति वर्ष की ब्याज दर पर 45,00,000/- रुपये का गृह ऋण लिया था।

जिसके लिए बीमा कंपनी से बीमा कवर भी लिया गया था।जिसमें मृत्यु के साथ साथ गंभीर बीमारियां भी सूचीबद्ध की गई थी ।अचानक बीमित पिता को मस्तिष्क आघात होने के बाद शिकायतकर्ता ने अपने पिता की तरफ़ अपने पिता को मस्तिष्क आघात होने के बाद बीमा दावे के लिए आवेदन किया, जिसे बीमा कंपनी द्वारा एक गंभीर बीमारी के रूप में सूचीबद्ध किया गया था ।

शिकायत में यह भी कहा गया था कि शिकायतकर्ता के पिता को एक ब्रेन स्ट्रोक का सामना करना पड़ा जिसके परिणामस्वरूप उन्हें स्थायी बीमारी हो गई जिसके परिणामस्वरूप वह कोई भी कार्य करने और बोलने तक से लाचार हो गए थे । शिकायतकर्ता ने अपने पिता की तरफ़ से बीमा दावे के लिए आवेदन किया क्योंकि वह बिस्तर पर थे और उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हुआ था और ब्रेन स्ट्रोक को बीमा कंपनी द्वारा बीमित बीमारियों की सूची में एक गंभीर बीमारी के रूप में उल्लिखित किया गया था।

इसी बीच शिकायतकर्ता के पिता का 11 सितंबर, 2023 को बीमारियों के कारण निधन हो गया। जिसके बाद शिकायतकर्ता ने बीमा कंपनी से संपर्क किया और अपने पिता के सभी दस्तावेज प्रस्तुत किए और बीमा कंपनी से आईडीबीआई बैंक के साथ पूरी ऋण राशि का भुगतान/निपटान करने का अनुरोध किया।

अधिवक्ता के.के. शर्मा ने सुनवाई के दौरान तर्क दिया कि बीमा कंपनी ने शिकायतकर्ता को पिता की जीवनशैली से जुड़ी बीमारी का उल्लेख करने के लिए दुर्भावनापूर्ण तरीके से राजी किया, भले ही वह ऐसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारी के कारण कभी अस्पताल में भर्ती नहीं हुए थे और यह शिकायतकर्ता के पिता की मृत्यु का कारण नहीं था।

उन्होंने आयोग को बताया कि शिकायतकर्ता के पिता की मृत्यु का कारण रक्त का थक्का बनना था जिससे उन्हें आघात हुआ। लेकिन नवंबर, 2023 को बीमा कंपनी द्वारा बीमा दावे को अस्वीकार कर दिया गया था।

सुनवाई के दौरान यह भी बताया गया था कि शिकायतकर्ता अपने पिता की मृत्यु के बाद ऋण की किस्त का भुगतान करने की स्थिति में नहीं था क्योंकि वह वित्तीय कठिनाई से जूझ रहा था और अब ऋण खाता नकारात्मक है। दावे को खारिज करते हुए बीमा कंपनी ने कहा था कि शिकायतकर्ता/उसके पिता को इरडा विनियम, 2016 के अनुसार प्रस्ताव फॉर्म में बीमाकृत होने वाले लोगों द्वारा उन बीमारियों के इतिहास का पूरा और स्पष्ट खुलासा करना चाहिए जो शिकायतकर्ता के पिता को पहले से मौजूद थी ।इन स्थितियों में मधुमेह और उच्च रक्तचाप जो मृतक को पांच से छह साल से मौजूद थीं का खुलासा न करने के कारण 16 अगस्त, 2023 को बीमा दावे को अस्वीकार कर दिया गया था।

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विवेक कुमार जैन
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