आयु प्रमाणपत्र के आधार पर छात्रा को कक्षा 8 में प्रवेश देने का निर्देश
आगरा /प्रयागराज 02 अक्टूबर।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में एक छात्रा सुश्री साक्षी को वैध आधिकारिक दस्तावेजों की मौजूदगी के बावजूद मेडिकल रिपोर्ट की अनुमानित आयु के आधार पर प्रवेश देने से इन्कार करने के स्कूल के फैसले को रद्द कर दिया है।
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कोर्ट ने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों के वैधानिक ढांचे के तहत जारी जन्म प्रमाण पत्रों पर भरोसा करना चाहिए।
हाईकोर्ट ने आयु पर मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर स्कूल द्वारा छात्रा को प्रवेश देने से इन्कार करने की कार्रवाई को “पूरी तरह से अनुचित” और “अतिचारी” करार दिया।
साक्षी ने शैक्षणिक सत्र 2022-23 के लिए जवाहर नवोदय विद्यालय, जगदीशपुर गौरा, संत कबीर नगर में कक्षा 6 में प्रवेश मांगा था। उसके जन्म प्रमाण पत्र, आधार कार्ड और टीकाकरण रिकॉर्ड में उसकी जन्मतिथि 25 जनवरी 2011 दर्ज है। विद्यालय की मेरिट सूची में सफलतापूर्वक स्थान पाने के बाद उसे संस्थान में प्रवेश दिया गया।
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हालांकि, स्कूल प्रिंसिपल को शक था कि साक्षी की उम्र स्वीकार्य आयु सीमा से ज़्यादा है। इसलिए उन्होंने उसे आयु निर्धारण परीक्षण के लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारी के पास भेजा। मेडिकल रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि उसकी उम्र 15 साल से ज़्यादा है, जो प्रवेश के लिए अधिकतम आयु सीमा से दो साल ज़्यादा है।
इस रिपोर्ट के आधार पर स्कूल ने उसे प्रवेश देने से मना कर दिया। जिसके कारण साक्षी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। एकल पीठ ने स्कूल के फैसले को सही मानते हुए 12 मार्च 2024 को याचिका खारिज कर दी।
एकल पीठ के फैसले के खिलाफ साक्षी ने खंडपीठ के समक्ष विशेष अपील दाखिल किया।
मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली तथा न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने एकलपीठ के फैसले को रद्द कर दिया।
कोर्ट ने स्कूल के चिकित्सा जांच मूल्यांकन पर सवाल उठाया।
कहा कि बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि आयु का निर्धारण आधिकारिक जन्म अभिलेखों के आधार पर किया जाना चाहिए।
इस मामले में ग्राम पंचायत द्वारा जारी अपीलकर्ता का जन्म प्रमाण पत्र और अन्य सहायक दस्तावेज वास्तविक थे और उनकी जन्म तिथि 25 जनवरी, 2011 की पुष्टि करते थे।
कोर्ट ने कहा कि चिकित्सा मूल्यांकन केवल एक अनुमान होता है। वह अपीलकर्ता की आयु का निर्णायक प्रमाण नहीं था।
कहा कि एकल पीठ ने याची के जन्म दस्तावेजों की वैधता पर विचार किए बिना याचिका खारिज करके वैधानिक गलती की है।
कोर्ट ने स्कूल के निर्णय को रद्द कर दिया तथा संस्था को आदेश दिया कि वह शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अनुरूप साक्षी को उसकी आयु के अनुरूप कक्षा में प्रवेश दे।
भले ही उसने दो वर्ष स्कूली शिक्षा नहीं ली हो। कोर्ट ने विपक्षियों को आदेश के दो सप्ताह के भीतर याची को कक्षा आठ में प्रवेश देने का निर्देश दिया।
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