आदेश सुरक्षित रखने के 14 महीने बाद भी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नहीं सुनाया फैसला तो सुप्रीम कोर्ट ने लगायी ट्रायल पर रोक

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आगरा /नई दिल्ली 05 दिसम्बर ।

सुप्रीम कोर्ट ने एक आरोपी के खिलाफ आपराधिक मुकदमे पर रोक लगाई जिसमें उसकी शिकायत पर गौर किया गया कि हाईकोर्ट ने उसका आदेश रद्द करने की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा, लेकिन आदेश सुरक्षित रखे जाने के 14 महीने बीत जाने के बावजूद उसने फैसला नहीं सुनाया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

हमें सही कारण नहीं पता कि हाईकोर्ट के जज ने फैसला सुरक्षित रखे जाने के 14 महीने बीत जाने के बावजूद फैसला क्यों नहीं सुनाया ? याचिका का किसी भी तरह से निपटारा क्यों नहीं किया ? हम हाईकोर्ट की रोस्टर बेंच से अनुरोध करते हैं कि वह याचिका का निपटारा कानून के अनुसार सभी पक्षों की सुनवाई के बाद तीन महीने के भीतर यथा शीघ्र करें ।

कोर्ट ने कहा कि यह रोक तब तक लागू रहेगी, जब तक हाईकोर्ट मामले पर अगली बार विचार नहीं करता। इसके बाद याचिकाकर्ता को मुकदमे की कार्यवाही में तब तक स्थगन की अवधि बढ़ाने की मांग करने की स्वतंत्रता होगी, जब तक कि मामले का निर्णय (हाईकोर्ट द्वारा) गुण-दोष के आधार पर नहीं हो जाता।

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याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और दावा किया कि दीवानी विवाद को आपराधिक अपराध का रंग दिया गया। प्रतिवादी नंबर 2 की शिकायत के आधार पर उसके खिलाफ कार्यवाही शुरू की गई।

उसने आपराधिक कार्यवाही को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया और 28 मार्च, 2023 को मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया गया। हालांकि, चौदह महीने बाद (27 मई, 2024 को) हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया और याचिका को उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।

याचिकाकर्ता इस बात से व्यथित था कि हाईकोर्ट द्वारा पारित किसी भी स्थगन आदेश के अभाव में उसके खिलाफ कार्यवाही जारी रही और आरोप तय करने के चरण तक पहुंच गई – जिससे हाईकोर्ट के समक्ष याचिका प्रभावी रूप से निष्फल हो गई।

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इसी पृष्ठभूमि में, हाईकोर्ट द्वारा 14 महीने तक सुरक्षित रखे गए निर्णय तथा उसके बाद अंततः उसे न सुनाए जाने पर कोई टिप्पणी किए बिना सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से अनुरोध किया कि वह याचिका का यथाशीघ्र तथा अधिमानतः 3 महीने के भीतर निपटारा करे।

केस टाइटल: रामदुलार सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य, एसएलपी (सीआरएल) नंबर 11919/2024

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साभार: लाइव लॉ

विवेक कुमार जैन
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