न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा करते समय, जवाबदेही को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए ।
जवाबदेही प्रत्येक व्यक्ति की अंतरात्मा के प्रति नहीं बल्कि समाज के प्रति एक स्थायी तंत्र के माध्यम से होनी चाहिए जो पारदर्शी और सत्यापन योग्य हो विषय पर दिए गए ज्ञापन को जिलाधिकारी ने किया ग्रहण
आगरा ३० अप्रैल ।
अधिवक्ता परिषद ब्रज, आगरा का प्रतिनिधि मण्डल ने बुधवार आज को माननीय राज्यपाल महोदय को जिलाधिकारी के माध्यम से “न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा करते समय, जवाबदेही को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए । जवाबदेही प्रत्येक व्यक्ति की अंतरात्मा के प्रति नहीं बल्कि समाज के प्रति एक स्थायी तंत्र के माध्यम से होनी चाहिए जो पारदर्शी और सत्यापन योग्य हो”
विषयक ज्ञापन प्रेषित किया जो अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के निर्देशानुसार अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के द्वारा पारित किया गया जिसमें मुख्य रूप से पारित प्रस्ताव निम्न है :-
1. एक नया कानून तत्काल लाया जाए ताकि नियुक्ति और न्यायिक आचरण की निगरानी की प्रक्रिया अधिक पारदर्शी तरीके से हो सके, साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि इस प्रक्रिया में न्यायपालिका की प्रमुख भूमिका हो।
2. जब तक यह कानून प्रभावी नहीं हो जाता, तब तक कॉलेजियम के माध्यम से उच्च न्यायपालिका में नियुक्ति की वर्तमान प्रक्रिया जारी रह सकती है, तथा इसमें पूर्व-विचार जांच आदि सहित अधिक पारदर्शिता लाई जा सकती है।
3. माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा वर्तमान में पद पर आसीन लोगों की जवाबदेही (अदालतों के संचालन सहित) से निपटने के लिए माननीय पूर्व मुख्य न्यायाधीशों और माननीय उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों तथा प्रतिष्ठित व्यक्तियों के साथ एक स्थायी समिति का गठन किया जाना चाहिए।
माननीय न्यायाधीशों के सम्मेलन में जवाबदेही के लिए किए गए बेंगलुरु घोषणापत्र को इस स्थायी तंत्र के माध्यम से पारदर्शी, सत्यापन योग्य तरीके से व्यवहार में लाया जाना चाहिए।
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4. माननीय उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को स्थानांतरण हेतु नोटिस दिया जा सकता है यदि उनके परिवार के सदस्य, निकट संबंधी संबंधित उच्च न्यायालय या उस राज्य के अधीनस्थ न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र में प्रैक्टिस करते हैं।
5. यदि मामला सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश से संबंधित है, तो उस विशेष परिवार का सदस्य उस न्यायाधीश के सेवानिवृत्त होने तक सर्वोच्च न्यायालय में प्रैक्टिस नहीं कर सकता है।
6. यदि आवश्यक हो तो प्रासंगिक क़ानूनों में संशोधन करके, सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्तियों और मध्यस्थता के लिए तीन वर्ष की सेवानिवृत्ति के बाद की कूलिंग अवधि का पालन किया जाना चाहिए।
7. माननीय सर्वोच्च न्यायालय और माननीय उच्च न्यायालयों में भविष्य की नियुक्तियाँ समान सेवानिवृत्ति आयु के अधीन हो सकती हैं।
8. माननीय उच्च न्यायालयों और माननीय सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीशों और उनके निकटतम परिवार के सदस्यों की परिसंपत्तियों को प्रत्येक वर्ष संबंधित न्यायालयों की वेबसाइटों पर अपलोड किया जा सकता है।
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9. प्रत्येक उच्च न्यायालय में एक तिहाई न्यायाधीश अन्य उच्च न्यायालयों से होने चाहिए । उल्लेखनीय है कि न्यायमूर्ति एम.एन. वेंकटचलैया के कार्यकाल के दौरान इसे शुरू किया गया था और कुछ हद तक लागू भी किया गया था।
ज्ञापन प्रेषित करने अधिवक्ता परिषद के पालक अधिकारी अशोक कुमार कुलश्रेष्ठ, ब्रज प्रांत उपाध्यक्ष सुभाष चंद्र गुप्ता जी, जिला इकाई के अध्यक्ष प्रवीण कुमार रावत, महामंत्री राजेश कुमार गुप्ता, सिविल कोर्ट इकाई के अध्यक्ष दिलीप कुमार दुबे, कलेक्ट्रेट इकाई के अध्यक्ष श्रीकृष्ण शुक्ला, विवेक कुमार वार्ष्णेय एडवोकेट (मीडिया प्रभारी), वेद प्रकाश गुप्ता, नवीन कुलश्रेष्ठ, चंद्र प्रकाश सिकरवार, सतीश चंद्र शर्मा, विवेक कुमार वार्ष्णेय, पवन दिवाकर, गौरव जैन, सुमंत चतुर्वेदी, अनिल चौधरी, शिवम शुक्ल आदि उपस्थित रहे ।
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