इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि युवा समाज को स्वीकृत न होने वाले लिव-इन रिलेशन की ओर आकर्षित हो रहे हैं ,समय आ गया है कि हम समाज में नैतिक मूल्यों को बचाएं

उच्च न्यायालय मुख्य सुर्खियां

आगरा /प्रयागराज 24 जनवरी ।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि लिव-इन रिलेशन को कोई सामाजिक स्वीकृति नहीं मिलती। फिर भी युवा ऐसे संबंधों की ओर आकर्षित होते हैं। अब समय आ गया है कि हम समाज में नैतिक मूल्यों को बचाने के लिए कोई रूपरेखा और समाधान खोजें।

जस्टिस नलिन कुमार श्रीवास्तव की पीठ ने कहा कि हम बदलते समाज में रह रहे हैं, जहां परिवार, समाज या कार्यस्थल पर युवा पीढ़ी के नैतिक मूल्य और सामान्य आचरण तेजी से बदल रहे हैं।

पीठ ने टिप्पणी की,

“जहां तक लिव-इन रिलेशन का सवाल है तो इसे कोई सामाजिक स्वीकृति नहीं मिली है, लेकिन चूंकि युवा ऐसे संबंधों की ओर आकर्षित होते हैं, क्योंकि कोई भी युवा, चाहे वह पुरुष हो या महिला, अपने साथी के प्रति अपने दायित्व से आसानी से बच सकता है, इसलिए ऐसे संबंधों के प्रति उनका आकर्षण तेजी से बढ़ रहा है। अब समय आ गया है कि हम सभी को इस पर विचार करना चाहिए और समाज में नैतिक मूल्यों को बचाने के लिए कोई रूपरेखा और समाधान खोजने का प्रयास करना चाहिए।”

पीठ ने पीड़िता के साथ शादी का झूठा झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाने और बाद में उससे शादी करने से इंकार करने के आरोप में आईपीसी और एससी /एसटी एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत आरोपी व्यक्ति को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की। एफ आई आर के अनुसार, आरोपी ने पीड़िता का गर्भपात भी कराया, जाति-संबंधी टिप्पणियां कीं। उसके साथ मारपीट भी की।

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मामले में जमानत की मांग करते हुए उसने हाईकोर्ट का रुख किया, जिसमें उसके वकील ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष की कहानी झूठी और मनगढ़ंत है, क्योंकि इस मामले की पीड़िता एक वयस्क महिला है। दोनों के बीच सभी संबंध सहमति से बने थे और उनके बीच शारीरिक संबंध कभी भी अभियोक्ता की सहमति या स्वतंत्र इच्छा के बिना नहीं बने या विकसित नहीं हुए।

यह भी प्रस्तुत किया गया कि पीड़िता लगभग 6 वर्षों की अवधि के लिए आरोपी/अपीलकर्ता के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में थी और गर्भपात का कथित तथ्य केवल बेबुनियाद आरोप था। यह भी प्रस्तुत किया गया कि आरोपी ने पीड़ित महिला से कभी भी शादी करने का वादा या आश्वासन नहीं दिया और वे आपसी सहमति से रिश्ते में थे।

इस पृष्ठभूमि में समाज में नैतिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए कुछ रूपरेखा और समाधान खोजने की आवश्यकता पर बल देते हुए तथा यह देखते हुए कि अभियोक्ता एक वयस्क महिला है, जो आरोपी के साथ सहमति से संबंध में थी, पीठ ने आरोपी को जमानत दे दी।

अदालत ने टिप्पणी की,

“मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए तथा अपराध की प्रकृति, साक्ष्य, आरोपी की मिलीभगत, सजा की गंभीरता और यह भी ध्यान में रखते हुए कि अभियोक्ता एक वयस्क महिला है। दोनों के बीच सहमति से संबंध बने थे, अदालत की राय है कि अपीलकर्ता ने जमानत के लिए मामला बनाया।”

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साभार: लाइव लॉ

विवेक कुमार जैन
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