आगरा / नई दिल्ली 01 अक्टूबर ।
सुप्रीम कोर्ट ने मलयालम एक्टर सिद्दीकी को एक युवा एक्ट्रेस द्वारा 8 वर्ष बाद लगाए गए आरोपों के आधार पर उनके खिलाफ दर्ज बलात्कार के मामले में गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया।
जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया है।
24 सितंबर को केरल हाईकोर्ट के जज जस्टिस सी.एस. डायस ने अग्रिम जमानत की मांग करने वाली मलयालम एक्टर सिद्दीकी याचिका खारिज की थी।
कोर्ट ने यह देखते हुए याचिका खारिज की थी कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री से अपराध में सिद्दीकी की प्रथम दृष्टया संलिप्तता का संकेत मिलता है।
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हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सिद्दीकी ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की। राज्य और पीड़िता ने कैविएट दायर किए हैं।
मलयालम सिनेमा में महिलाओं के शोषण के बारे में जस्टिस हेमा समिति की रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद महिला ने सार्वजनिक रूप से आरोप लगाया कि सिद्दीकी ने 2016 में उसका यौन शोषण किया, जब वह फिल्म उद्योग में उसे अवसर देने के बाद होटल के कमरे में उससे मिली थी।
सार्वजनिक आरोपों के बाद उसने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 और 506 के तहत एफआईआर दर्ज कराई।
केरल हाईकोर्ट ने सिद्दीकी का तर्क खारिज कर दिया कि एफआईआर दर्ज करने में देरी घातक थी।
हाईकोर्ट ने कहा,
“पीड़िता का उपरोक्त स्पष्टीकरण प्रशंसनीय है या नहीं, इसका अंततः मूल्यांकन किया जाएगा। प्री-ट्रायल के बाद निर्णय लिया जाएगा। फिर भी यह तर्क कि उपरोक्त देरी पूरे अभियोजन मामले को प्रभावित करती है, शिकायत को रद्द करने का आधार नहीं है, खासकर जमानत आवेदन पर विचार करते समय। यौन शोषण और हमले के पीड़ितों को मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और सामाजिक बाधाओं का अनुभव हो सकता है, जो मामले की रिपोर्ट करने में देरी को बढ़ावा देते हैं, जिसे अनिवार्य रूप से आघात के संदर्भ में समझा जाना चाहिए।”
हाईकोर्ट ने यह भी माना कि सिद्दीकी के खिलाफ आरोपित कृत्य “बलात्कार” की विस्तारित परिभाषा के दायरे में आएंगे।
केस टाइटल: सिद्दीकी बनाम केरल राज्य और अन्य
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साभार: लाइव लॉ